सौ बार तौबा की सुन्नत (The Prophet repents 100 times a day)
इस्लाम इंसान को हमेशा अल्लाह तआला की तरफ़ लौटने और अपने गुनाहों से माफी माँगने की तालीम देता है। तौबा का मतलब है गुनाह पर नादिम होकर अल्लाह से माफी माँगना और भविष्य में उस गुनाह को न करने का पक्का इरादा करना।
नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम की तौबा की आदत (The Prophet repents 100 times a day )
हज़रत अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि.) से रिवायत है –
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “ऐ लोगो! अल्लाह की तरफ़ तौबा करो। बेशक मैं दिन में सौ बार तौबा करता हूँ।” (सहीह मुस्लिम, हदीस: 2702)
यह हदीस हमें बताती है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम, जिनके सारे गुनाह (पिछले और अगले) माफ़ कर दिए गए थे, फिर भी रोज़ाना सौ बार तौबा करते थे। इसका मक़सद उम्मत को यह सिखाना है कि कोई भी इंसान गुनाह से पाक नहीं है, इसलिए हर वक़्त अल्लाह से माफी माँगते रहना चाहिए।
कुरआन में तौबा की अहमियत (The Prophet repents 100 times a day )
अल्लाह तआला ने कुरआन में तौबा करने वालों के लिए रहमत और मग़फ़िरत की खुशखबरी दी है:
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सूरह अत-तहरीम (66:8) –
“ऐ ईमान लाने वालो! अल्लाह की तरफ़ सच्ची तौबा करो। उम्मीद है कि तुम्हारा रब तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर देगा और तुम्हें ऐसी जन्नतों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी।”
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सूरह अल-बक़रह (2:222) –
“बेशक अल्लाह तौबा करने वालों और पाक-साफ़ रहने वालों को पसंद करता है।”
तौबा करने का तरीका (The Prophet repents 100 times a day )
तौबा के लिए चार अहम शर्तें बताई गई हैं –
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गुनाह छोड़ देना।
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गुनाह पर सच्चे दिल से शर्मिंदा होना।
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दोबारा उस गुनाह की तरफ़ न जाने का इरादा करना।
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अगर गुनाह इंसानों का हक़ मारने से जुड़ा हो तो उनका हक़ अदा करना।
तौबा की फ़ज़ीलत पर दूसरी हदीसें (The Prophet repents 100 times a day )
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हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –
“अल्लाह अपने बंदे की तौबा से उस आदमी से ज़्यादा खुश होता है जिसने रेगिस्तान में अपनी ऊँटनी खो दी हो और फिर अचानक उसे पा लिया हो।”
(सहीह बुख़ारी: 6309, सहीह मुस्लिम: 2744)
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दूसरी हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –
“जो तौबा करता है, वह ऐसा है जैसे उसने कभी गुनाह किया ही न हो।”
(सुनन इब्न माजह: 4250, हसन)
तौबा हर मुसलमान की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है। जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम दिन में सौ बार तौबा करते थे तो हमें उससे ज़्यादा इसकी ज़रूरत है। तौबा न केवल गुनाहों की माफी का जरिया है बल्कि यह इंसान के दिल को सुकून, नेकी की तरफ़ रुझान और अल्लाह की रहमत हासिल करने का सबसे आसान रास्ता है।
आज की ज़िन्दगी में तौबा के फ़ायदे (The Prophet repents 100 times a day )
आज के दौर में इंसान गुनाह और गलतियों से बच ही नहीं सकता। रोज़ाना छोटी-बड़ी गलतियाँ इंसान से होती रहती हैं—झूठ बोलना, गुस्से में किसी का दिल दुखाना, नमाज़ छोड़ देना, या नज़र की हिफ़ाज़त न करना। तौबा इंसान को इन बोझों से हल्का करती है और दिल में सुकून पैदा करती है। तौबा करने से इंसान का रब के साथ रिश्ता मज़बूत होता है, और उसका दिल पाक-साफ़ होकर नई ताज़गी महसूस करता है।
मनोवैज्ञानिक नज़रिए से भी तौबा इंसान की गिल्ट और पछतावे की भावना को कम करती है और इंसान को नयी शुरुआत करने का हौसला देती है। तौबा की बरकत से इंसान के दिल से उदासी, बेचैनी और बुरे ख़याल दूर होते हैं और उसे सकारात्मक सोच और आत्मिक सुकून मिलता है। यही वजह है कि इस्लाम तौबा को सिर्फ़ आख़िरत के लिए नहीं बल्कि दुनिया की बेहतर ज़िन्दगी के लिए भी ज़रूरी बताता है।
तौबा और मानसिक सुकून (The Prophet repents 100 times a day )
आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में बहुत से लोग तनाव (Stress), डिप्रेशन, बेचैनी और गिल्ट (Guilt) का शिकार हो जाते हैं। जब इंसान गुनाह करता है तो उसके दिल में एक बोझ और बेचैनी पैदा होती है, जिससे उसका ज़हन अशांत हो जाता है। तौबा इस बोझ को हल्का करती है, क्योंकि इंसान यह यक़ीन कर लेता है कि अल्लाह ने उसकी गलती माफ़ कर दी है।
मनोवैज्ञानिक लिहाज़ से भी, तौबा इंसान के अंदर गिल्ट रिलीज़ करती है और उसे नयी शुरुआत (New Beginning) का एहसास कराती है। इससे इंसान का सेल्फ-एस्टीम (Self-Esteem) बेहतर होता है, वह खुद को दोष देने से बचता है और उसकी सोच सकारात्मक बनती है।
कई इस्लामी उलमा और आधुनिक मनोवैज्ञानिक इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि तौबा से इंसान का दिल और दिमाग दोनों को सुकून और राहत मिलती है। यही वजह है कि तौबा न सिर्फ़ आख़िरत के लिए ज़रूरी है बल्कि यह दुनिया की मानसिक और रूहानी सेहत को भी मज़बूत करती है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल FAQ (The Prophet repents 100 times a day )
Q1: तौबा करने का सही तरीका क्या है?
तौबा के लिए इंसान को अपने गुनाह छोड़ना, दिल से शर्मिंदा होना, दोबारा गुनाह न करने का इरादा करना और अगर किसी का हक़ मारा है तो वह वापस करना ज़रूरी है।
Q2: क्या बार-बार तौबा करने की इजाज़त है?
हाँ, इस्लाम में तौबा का दरवाज़ा हमेशा खुला है। इंसान गुनाह करता रहे और हर बार सच्चे दिल से तौबा करे तो अल्लाह माफ़ करता है।
Q3: नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम रोज़ कितनी बार तौबा करते थे?
सहीह मुस्लिम की हदीस (2702) के अनुसार, नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम रोज़ाना सौ बार अल्लाह से तौबा करते थे।
Q4: क्या तौबा सिर्फ़ बड़े गुनाहों के लिए है?
नहीं, तौबा हर गुनाह के लिए है—चाहे वह छोटा हो या बड़ा। यहाँ तक कि नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम भी तौबा करते थे जबकि वह गुनाहों से पाक थे।
Q5: तौबा करने के क्या फ़ायदे हैं?
तौबा से इंसान के गुनाह माफ़ होते हैं, दिल हल्का और सुकून से भर जाता है, और अल्लाह के साथ उसका रिश्ता मज़बूत होता है।
जज़ाकल्लाह खैर।
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