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अल वसीला जन्नत का सबसे बुलंद मक़ाम (Al Waseelah in islam Hindi Authentic Details)

अल वसीला जन्नत का सबसे बुलंद मक़ाम (Al Waseelah in islam Hindi Authentic Details)

इस्लाम में अल-वसीला का तसव्वुर एक बेहद ख़ास और मुबारक दर्जा है, जिसका ज़िक्र हदीस शरीफ़ में मिलता है। अल-वसीला का लफ़्ज़ अरबी ज़बान से लिया गया है, जिसका मतलब है “करीब होने का ज़रिया” या “सर्वोच्च मक़ाम”। उलमा के मुताब़िक़, यह जन्नत का सबसे ऊँचा और बुलंद मक़ाम है, जो अल्लाह तआला ने सिर्फ़ एक ही बन्दे के लिए मुक़र्रर किया है — और वह हैं हमारे प्यारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम यह दर्जा अल्लाह के सबसे क़रीबी मक़ामात में से है और इस पर पहुँचना किसी भी इंसान के लिए सबसे बड़ा शरफ़ है।

हदीस का हवाला (Al Waseelah in islam Hindi)

सहीह मुस्लिम में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया-

“जब तुम अज़ान सुनो तो वैसे ही दोहराओ, फिर मुझ पर सलात भेजो। जो मुझ पर एक बार सलात भेजेगा, अल्लाह उस पर दस रहमत नाज़िल करेगा। फिर अल्लाह से मेरे लिए वसीला की दुआ करो, जो जन्नत में एक ऐसा मक़ाम है, जो अल्लाह के बन्दों में सिर्फ़ एक के लिए है, और मुझे उम्मीद है कि वह मैं हूँ।”
(सहीह मुस्लिम: हदीस 384)

यह हदीस साफ़ तौर पर बताती है कि अल-वसीला का मक़ाम एकमात्र नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को मिलेगा और हमें अज़ान के बाद इसके लिए दुआ करनी चाहिए।

अल-वसीला की हकीकत (Al Waseelah in islam Hindi)

अल-वसीला को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि जन्नत के कई दर्जे हैं और हर दर्जे का अपना रुतबा और फ़ज़ीलत है। लेकिन अल-वसीला उन सब से ऊपर है। इमाम नववी रहमतुल्लाह अलैह के मुताबिक़, अल-वसीला का मक़ाम जन्नत में सिर्फ़ एक शख़्स को मिलेगा और यह नबी मुहम्मद ﷺ के लिए मुक़र्रर है।

अल-वसीला की दुआ और उसका वक़्त (Al Waseelah in islam Hindi)

अल-वसीला से ताल्लुक रखने वाली मशहूर दुआ अज़ान सुनने के बाद पढ़ी जाती है-

اللَّهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ وَالصَّلاةِ الْقَائِمَةِ آتِ مُحَمَّدًا الْوَسِيلَةَ وَالْفَضِيلَةَ وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَحْمُودًا الَّذِي وَعَدْتَهُ 

‘Allahumma Rabba hadhihi-dda` watit-tammah, was-salatil qa’imah, ati Muhammadan al-wasilata wal-fadilah, wa b`ath-hu maqaman mahmudan-il-ladhi wa`adtahu’

ऐ अल्लाह! इस पूरी दावत और क़ायम की गई नमाज़ के रब, मोहम्मद ﷺ को वसीला और फ़ज़ीलत अता कर, और उन्हें उस मक़ामे महमूद पर पहुँचा जिसे तूने उनसे वादा किया है।

इस दुआ का मक़सद यह है कि हम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम के लिए अल्लाह से अल-वसीला और फ़ज़ीलत की दुआ करें। हदीस में आया है कि जो शख़्स यह दुआ अज़ान के बाद पढ़ेगा, उसे क़यामत के दिन नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम की शफ़ाअत नसीब होगी।

उलमा की राय (Al Waseelah in islam Hindi)

कई उलमा ने अल-वसीला की तफ़्सीर की है:

भले ही अल-वसीला सिर्फ़ नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम के लिए मुक़र्रर है, लेकिन इसकी बरकत पूरी उम्मत को मिलती है। जब उम्मत अज़ान के बाद यह दुआ पढ़ती है, तो उन्हें नबी ﷺ की शफ़ाअत का वादा मिलता है। यह उम्मत और नबी ﷺ के बीच मोहब्बत और रूहानी रिश्ता मज़बूत करने का भी ज़रिया है।

5 आम सवाल-जवाब FAQ (Al Waseelah in islam Hindi)

  1. अल-वसीला क्या है?
    यह जन्नत का सबसे ऊँचा मक़ाम है, जो सिर्फ़ नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को मिलेगा।

  2. अल-वसीला का ज़िक्र कहाँ है?
    इसका ज़िक्र सहीह मुस्लिम और सहीह बुख़ारी जैसी किताबों में हदीस के तौर पर मौजूद है।

  3. अल-वसीला की दुआ कब पढ़ी जाती है?
    अज़ान सुनने के बाद, क़लिमा दोहराने और दुरूद पढ़ने के बाद यह दुआ की जाती है।

  4. क्या अल-वसीला से उम्मत को भी फ़ायदा है?
    जी हाँ, जो इसे अज़ान के बाद पढ़ेगा उसे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम की शफ़ाअत का वादा है।

  5. क्या अल-वसीला पर ईमान लाना ज़रूरी है?
    हाँ, यह अहले-सुन्नत वल-जमाअत का अकीदा है।

जज़ाकल्लाह खैर।

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