सलात-उत-तौबह अदा करने का तरीका ( 3 Simple Steps to Perform Salat Al-Tawbah )
सलात-उत-तौबह यानी तौबा की नमाज़ इस्लाम में वह ख़ास नफ़्ल (नफली) नमाज़ है जो इंसान अपने गुनाहों से तौबा करने और अल्लाह तआला से माफ़ी माँगने के लिए अदा करता है। यह नमाज़ इबादत और तौबा का बेहतरीन ज़रिया है जिससे बंदा अपने दिल को गुनाहों से पाक करता है और अल्लाह की रहमत का हक़दार बनता है।
सलात-उत-तौबह का इतिहास और आग़ाज़ (Steps to Perform Salat Al-Tawbah )
सलात-उत-तौबह का हुक्म सीधे तौर पर क़ुरआन और हदीस से साबित है। क़ुरआन में अल्लाह तआला फरमाते है –
क़ुरआन करीम –
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا تُوبُوا إِلَى اللَّهِ تَوْبَةً نَصُوحًا
“ऐ ईमान वालों! अल्लाह की तरफ़ ख़ालिस तौबा करो।”
(सूरत अत-तहरीम 66:8)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने भी तौबा और इस्तिग़फ़ार की अहमियत पर ज़ोर दिया और इस अमल को एक ख़ास इबादत के तौर पर बताया।
हदीस शरीफ़ –
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –
“जब किसी बंदे से गुनाह हो जाए, फिर वह अच्छी तरह वुज़ू करे और दो रकअत नमाज़ अदा करे, फिर अल्लाह से माफ़ी माँगे, तो अल्लाह तआला उसे माफ़ कर देता है।”
(अबू दाऊद, किताबुस-सलात, हदीस 1521 / तिर्मिज़ी)
सलात-उत-तौबह के फ़ज़ाइल (फ़ायदे) (Steps to Perform Salat Al-Tawbah )
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गुनाहों की माफी का ज़रिया – अल्लाह तआला तौबा को क़ुबूल करता है और बंदे को पाक कर देता है।
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दिल की सुकूनत – गुनाह का बोझ हटने से दिल को राहत और तसल्ली मिलती है।
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अल्लाह की रहमत और क़ुर्ब – तौबा से अल्लाह अपने बंदे से मुहब्बत करता है।
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बरकत और रिज़्क़ में इज़ाफ़ा – तौबा करने वालों पर अल्लाह आसमान से रहमत और बरकत नाज़िल करता है।
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आख़िरत की निजात – तौबा करने से क़ब्र और हश्र में आसानी मिलती है।
सलात-उत-तौबह अदा करने का तरीका (Steps to Perform Salat Al-Tawbah )
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नियत (इरादा करना) – दिल में पक्का इरादा करें कि सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा और गुनाहों से तौबा के लिए यह नमाज़ पढ़ रहा हूँ।
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वुज़ू करना – अच्छे तरीक़े से पाक वुज़ू करना।
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दो या चार रकअत नफ्ल नमाज़ पढ़ना –
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पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह अल-काफ़िरून पढ़ें।
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दूसरी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह अल-इख़लास पढ़ें।
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(अन्य सूरह भी पढ़ सकते हैं, लेकिन ये मसलून है।)
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नमाज़ के बाद तौबा और इस्तिग़फ़ार –
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ख़ुलूस-ओ-ख़ुज़ू से “अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली ज़म्बिन वा अतोबु इलैह” बार-बार पढ़ें।
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अपने गुनाहों को याद कर दिल से अल्लाह से माफ़ी माँगें।
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आइन्दा न गुनाह करने का अज़्म – तौबा तभी क़ुबूल होती है जब इंसान पक्का इरादा करे कि वह गुनाह नहीं दोहराएगा।
क़ुरआन और हदीस में तौबा की अहमियत (Steps to Perform Salat Al-Tawbah )
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क़ुरआन:
“और जो लोग कोई बेहयाई का काम कर बैठें या अपने ऊपर ज़ुल्म कर लें, फिर अल्लाह को याद करें और अपने गुनाहों की माफ़ी चाहें… और अल्लाह के सिवा कौन गुनाह माफ़ करेगा?”
(सूरत आले-इमरान 3:135) -
हदीस:
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –“हर इंसान गुनाह करता है और सबसे अच्छे गुनाहगार वे हैं जो तौबा करने वाले हैं।”
(इब्न माजह, किताबुज़-ज़ुह्द, हदीस 4251)सलात-उत-तौबह एक ऐसा अमल है जो मुसलमान को गुनाहों से पाक करता है और अल्लाह के करीब लाता है। यह हर उस वक़्त अदा की जा सकती है जब इंसान को अपने गुनाहों का अहसास हो। तौबा और इस्तिग़फ़ार से इंसान की ज़िंदगी में रोशन राहें खुलती हैं और आख़िरत की कामयाबी हासिल होती है।
सलात-उत-तौबह पर FAQs (Steps to Perform Salat Al-Tawbah )
Q1: सलात-उत-तौबह कब पढ़ी जाती है?
जब भी इंसान को अपने गुनाहों का एहसास हो, तुरंत यह नमाज़ पढ़ी जा सकती है।
Q2: क्या हर गुनाह के बाद सलात-उत-तौबह पढ़ना ज़रूरी है?
फ़र्ज़ नहीं लेकिन पढ़ना बहुत मुस्तहब (बेहद पसंदीदा) है, क्योंकि यह गुनाहों की माफी का ज़रिया है।
Q3: क्या सलात-उत-तौबह सिर्फ़ बड़ी ग़लतियों पर है?
नहीं, छोटे-बड़े हर गुनाह पर तौबा करनी चाहिए।
Q4: सलात-उत-तौबह कितनी रकअत होती है?
दो रकअत नफ़्ल अदा की जाती है, लेकिन चार रकअत भी पढ़ना जाइज़ है।
Q5: क्या सलात-उत-तौबह के बाद गुनाह दोहराने से तौबा टूट जाती है?
अगर इंसान जान-बूझकर वही गुनाह दोहराए तो तौबा का असर कम हो जाता है। मगर दोबारा तौबा के दरवाज़े हमेशा खुले हैं।
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