हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) का तआरुफ़ ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq The Best Friend of Prophet Muhammad pbuh)

हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) का तआरुफ़ ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

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8 ख़िलाफ़त के अहम कारनामे ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq

हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) का तआरुफ़ ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

पूरा नाम: अब्दुल्लाह इब्न अबू कूहाफा रज़ि.
उपनाम: अबू बकर रज़ि.
लक़ब: सिद्दीक़ (जो हर हाल में सच्चाई का साथ देने वाला)
जन्म: सन 573 ई. मक्का शरीफ़
वफ़ात: 23 अगस्त 634 ई. (13 हिजरी), मदीना शरीफ़
दफ़न: मस्जिद-ए-नबवी, हुजरा-ए-अक़दस (हुजरा-ए-आइशा रज़ि.)

हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम की तारीख़ की सबसे रोशन शख्सियतों में से एक हैं। आपका असल नाम ‘अब्दुल्लाह इब्न अबी कूहाफा’ था, लेकिन आप अबू बकर के नाम से ज़्यादा मशहूर हुए। आप का लक़ब ‘सिद्दीक़’ खुद रसूलुल्लाह ﷺ ने अता फ़रमाया क्योंकि आपने हमेशा हक़ और सच का साथ दिया और नबी करीम ﷺ की हर बात पर बिला चूं-ओ-चरा यक़ीन किया। आप बनू तमीम क़बीले से ताल्लुक रखते थे और मक्का में तिजारत करते थे। आप उन गिने-चुने लोगों में थे जिनका दौरे जिहालत में भी किरदार पाकीज़ा और सच्चा माना जाता था।

आपकी ज़िंदगी के अहम मराहिल ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

1. ईमान लाने वालों में सबसे पहले ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

  • हज़रत अबू बकर (रज़ि.) वो पहले शख्स थे जिन्होंने बग़ैर किसी शक के रसूल अल्लाह ﷺ पर ईमान लाया।

  • उन्होंने अपनी दौलत और असर-ओ-रसूख से कई सहाबा जैसे हज़रत बिलाल (रज़ि.), आमिर बिन फुहैरा (रज़ि.) को आज़ाद कराया।

हज़रत अबू बकर (रज़ि.) सबसे पहले ईमान लाने वालों में से हैं। मर्दों में वो पहले इंसान थे जिन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इस्लाम को क़ुबूल किया। उनकी दावत से कई बड़े सहाबा इस्लाम लाए जैसे हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ि.) , ज़ुबैर बिन अव्वाम (रज़ि.) , साद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि.) वग़ैरा। आपने इस्लाम की तब्लीग़ में बेहतरीन किरदार अदा किया और हमेशा नबी ﷺ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले।

2. रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम के साथी हर मुश्किल वक़्त में ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

हिजरत-ए-मदीना: जब नबी रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम मक्का से मदीना की तरफ़ हिजरत फ़रमा रहे थे, उस सफ़र में सिर्फ़ हज़रत अबू बकर (रज़ि.) उनके साथी थे।

आपकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि आप रसूलुल्लाह ﷺ के नज़दीकी और वफ़ादार साथी थे। हिजरत-ए-मदीना का वाक़िया इस बात की सबसे बड़ी मिसाल है, जब नबी करीम ﷺ ने मक्का छोड़ते वक़्त अबू बकर (रज़ि.) को अपना हमसफ़र बनाया। ग़ार-ए-सौर में तीन दिन तक दोनों ने क़याम किया और हज़रत अबू बकर ने पूरी हिफ़ाज़त और निगहबानी की। जब मक्का के काफ़िरों ने उन्हें तलाश किया और ग़ार के बाहर तक आ पहुँचे, तो उन्होंने अपने आंसुओं में डूबकर बस इतना कहा:

“अगर उन्हें नीचे देखना हुआ तो हम नज़र आ जाएंगे”,
लेकिन नबी ﷺ ने फ़रमाया:
“घबराओ मत, अल्लाह हमारे साथ है।” (सूरा तौबा 9:40)

3. सिद्दीक़ का लक़ब ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

मेरा’ज की रात –  जब मक्का के मुशरिक़ों ने रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम की बात का मज़ाक उड़ाया कि वो आसमानों की सैर कर आए, तब अबू बकर (रज़ि.) ने बिला झिझक कहा:

“अगर ये बात नबी ﷺ ने कही है, तो यक़ीनन सच है।”

जब नबी ﷺ मेराज से लौटे और मक्का के लोगों को बताया कि वे एक रात में बैतुल मक़्दिस और फिर सात आसमानों का सफ़र कर आए, तो काफ़िरों ने उनका मज़ाक उड़ाया और अबू बकर (रज़ि.) के पास जाकर पूछा, “क्या तुम भी इस बात पर यक़ीन करते हो?” उन्होंने कहा –

“अगर यह बात मेरे महबूब ने कही है तो बेशक यह सच है।” इसी मौके़ पर उन्हें “सिद्दीक़” का लक़ब दिया गया – यानी वो जो हर हाल में सच्चाई की तस्दीक़ करे।

4. ख़िलाफ़त का आग़ाज़ (632 ई.) ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

  • रसूलुल्लाह ﷺ के विसाल के बाद जब उम्मत में कशमकश थी, तो हज़रत उमर (रज़ि.) ने आपकी बैअत करवाई।
  • वो पहले खलीफ़ा बने और उम्मत को मुनज़्ज़म किया।

रसूलुल्लाह ﷺ के विसाल के बाद उम्मत एक कशमकश में थी कि अगला रहनुमा कौन होगा। सहाबा किराम की सलाह से हज़रत अबू बकर (रज़ि.) को पहला खलीफ़ा मंसूब किया गया। उन्होंने उम्मत को फ़ितनों से बचाया, इस्लामी निज़ाम को क़ायम रखा और कई अहम फौजी और दीनवी क़दम उठाए। उनके दौर में झूठे नबियों के ख़िलाफ़ जंग लड़ी गई, मर्तदीन (जो इस्लाम छोड़ बैठे थे) को इस्लाम की तरफ़ वापस लाया गया, और ज़कात ना देने वालों से सख़्ती से निपटा गया।

ख़िलाफ़त के अहम कारनामे ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

1. झूठे नबियों और बाग़ियों के ख़िलाफ़ जंग
  • मुसैलमा कज़्ज़ाब, तुलैहा, और सजाह जैसे झूठे नबियों के ख़िलाफ़ जंग का एलान किया।
2. मर्तदीन के ख़िलाफ़ जिहाद
  • कुछ अरब कबीलों ने ज़कात देना बंद किया और इस्लाम से फिर गए, अबू बकर (रज़ि.) ने फौजी मुहिमें चलाकर उन्हें क़ाबू किया।
3. क़ुरआन की तदवीन (जमअ)
  • यमामा की जंग में कई क़ारी शहीद हो गए, तो हज़रत उमर (रज़ि.) के मश्वरे पर क़ुरआन को किताब की सूरत में जमा करवाया।
4. फतूहात-ए-इस्लामिया की बुनियाद
  • हज़रत अबू बकर (रज़ि.) के दौर में ही हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि.) की क़यादत में इराक़ और शामी इलाक़ों पर इस्लामी फ़तूहात शुरू हुईं।

क़ुरआन की तदवीन का सबसे अहम क़दम ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

रसूलुल्लाह ﷺ की वफ़ात के बाद यमामा की जंग में कई हाफ़िज़-ए-क़ुरआन शहीद हो गए, जिससे डर था कि कहीं क़ुरआन का हिस्सा गुम न हो जाए। हज़रत उमर (रज़ि.) के मशवरे से हज़रत अबू बकर (रज़ि.) ने हज़रत ज़ैद बिन साबित (रज़ि.) की सरपरस्ती में क़ुरआन को एक मुकम्मल दस्तावेज़ की शक्ल में जमा करवाया। यह इस्लाम की तारीख़ का सबसे अज़ीम काम था, जिसने आगे चलकर उम्मत को क़ुरआन मुहाफ़िज़ करके रखा।

इस्लामी फ़तूहात और ख़िलाफ़त का फ़रोग़ ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

आपके दौर में ही हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि.) जैसे जंगी सिपहसालारों ने ईरान और शाम की सरहदों तक इस्लामी फतूहात का सिलसिला शुरू किया। आपने इराक़ की तरफ़ इस्लामी फौजें भेजीं और बाइज़न्टाइन सल्तनत से भी मुक़ाबला शुरू हुआ। इन फतूहात की बुनियाद पर ही आगे चलकर इस्लामी सल्तनत ने पूरी दुनिया में असर डाला।

शख्सियत के नुमायां पहलू ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

  • सीधा-सादा मिज़ाज: सादगी इतनी कि ख़लीफ़ा होने के बावजूद बाज़ार में कपड़े बेचते नज़र आते।

  • मालदार लेकिन दरियादिल: इस्लाम की राह में पूरा माल बारहा वक़्फ़ किया।

  • उम्मत का ख़ैरख्वाह: मौत के वक़्त ख़लीफ़ा उमर (रज़ि.) को नामज़द किया ताकि उम्मत में इख़्तिलाफ़ न फैले।

वफ़ात और दफ़न ( 1st Khalifa Abu Bakr Al Siddiq RA.)

  • हज़रत अबू बकर (रज़ि.) ने अपनी वसीयत में लिखा कि उन्हें रसूलुल्लाह ﷺ के पास दफ़न किया जाए।

  • वो सिर्फ़ दो साल, तीन महीने ख़लीफ़ा रहे, लेकिन इस्लाम को इक्तेसादी, फ़ौजी और दीनवी बुनियादों पर मज़बूत किया।

हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) की वफ़ात 63 साल की उम्र में मदीना मुनव्वरा में हुई। आपने वसीयत की थी कि उन्हें रसूलुल्लाह ﷺ के पहलू में दफ़न किया जाए। उन्हें हुजरा-ए-पाक (हज़रत आइशा का कमरा) में नबी ﷺ के पहलू में दफ़न किया गया — जो आज मस्जिद-ए-नबवी के अंदर मौजूद है।

हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) की ज़िंदगी फ़िदा-ए-रसूल, दीनी ख़िदमात, और उम्मत के लिए फिक्र का बेहतरीन नमूना है। उनका किरदार, उनके फैसले, और उनका ईमान, हर दौर के मुसलमानों के लिए एक रोशनी की मानिंद हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि सच्चा दोस्त वो होता है जो हर हाल में अपने महबूब के साथ खड़ा रहे – चाहे हालात जैसे भी हों।

जज़ाकल्लाह खैर। अल्लाह सुब्हानवताला इस कोशिश में हुई छोटी बड़ी गलती को माफ़ करे  – आमीन ।

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