सहीह बुखारी हदीश नंबर 3 (Sahih Al Bukhari Hadith 3 in Hindi )
सय्यदा हज़रते आयशा रदिअल्लाहु ताला अन्हा ने फ़रमाया –
रसूलुल्लाह सल्लाहो अलय्हि वसल्लम पर पहले पहल जो वही नाज़िल होना शुरू हुई, वह अच्छे ख्वाब होते थे। जब कभी ख्वाब देखते वह सुबह की रौशनी की तरह जाहिर हो जाता, फिर आप खल्वत पसंद बनते गए और गारे हिरा में क़याम करने लगे। वहाँ कई राते इबादत में बसर करते तब तक की जब घर आने का ख्याल आ जाता। सफर और रुकने के लिए खाने पीने का सामान ले जाते ( फिर जब वह खत्म होता ) तो हज़रते खदीजा रदिअल्लाहु ताला अन्हा के पास आते और खाना पानी ले जाते। हत्ता की उसी गारे हिरा में क़याम के दौरान आप पर वही का नुज़ूल हुआ। फरिश्ता आया और उसने कहा पढ़िए , आप फरमाते है – “मैंने कहा, मैं पढ़ा हुआ नहीं”। आप फरमाते है – ” फरिस्ते ने मुझे इस जोर से भेंचा कि मेरी ताक़त जवाब दे गई । फिर मुझे छोड़ा और कहा पढ़िए , मैंने कहा, मैं पढ़ा हुआ नहीं। फिर दूसरी बार मुझे पकड़ा और जोर से दबाया यहाँ तक कि मेरी ताक़त जवाब देने लगी , फिर मुझे छोड़ा और कहा पढ़िए , मैंने कहा, मैं पढ़ा हुआ नहीं। उसने फिर मुझे पकड़ा और तीसरी बार दबोचा फिर मुझे छोड़ दिया और कहा – पढ़ें! अपने रब के नाम से , जिसने सब कुछ बनाया , जिसने इंसान को जमे हुए खून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़ें ! और तुम्हारा रब बड़ी इज्जतों वाला है। रसूलुल्लाह सल्लाहो अलय्हि वसल्लम ने उन आयातों को दोहराया, आप वही के साथ वापस आये और आपका दिल काँप रहा था। आप हज़रते खदीजा बिन्त ख़ुवैलद ( रदिअल्लाहु ताला अन्हा ) के पास आये और फ़रमाया – ” मुझे कम्बल उढ़ा दो! मुझे कम्बल उढ़ा दो! उन्होंने कम्बल उढ़ा दिया, हत्ता कि आप का खौफ जाता रहा। हज़रते खदीजा ( रदिअल्लाहु ताला अन्हा ) को सारा वाक़िया सुनाया और फ़रमाया – ” मुझे खौफ है कि मेरी जान खतरे में है “। हज़रते खदीजा ( रदिअल्लाहु ताला अन्हा ) ने कहा – हरगिज़ नहीं ! अल्लाह कि कसम , अल्लाह आपको कभी रुस्वा नहीं करेगा। आप तो सिला रहमी करने वाले , कमजोरो का बोझ उठाने वाले , मोहताजों के लिए कमाने वाले , मेहमान नवाज़ी करने वाले , राहे हक़ में मसाइब सहने वाले है। हज़रते खदीजा ( रदिअल्लाहु ताला अन्हा ) आपको लेकर वरक़ा बिन नौफल बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा के पास गयीं, जो हज़रते खदीजा ( रदिअल्लाहु ताला अन्हा ) के चचा ज़ात भाई थे, जाहिलियत के दौर में ईसाई हो गए थे और इब्रानी ( हिब्रू ) में किताब लिखा करते थे। चुनांचे इंजील से इब्रानी ( हिब्रू ) में लिखते जितना कि अल्लाह सुभानवताला आपसे लिखवाना चाहते। वह काफी बूढ़े और नाबीना हो चुके थे। हज़रते खदीजा ( रदिअल्लाहु ताला अन्हा ) ने वरक़ा से कहा – ” मेरे चचा ज़ात भाई , अपने भतीजे मुहम्मद ( सल्लाहो अलय्हि वसल्लम ) की बात सुनो। वरक़ा ने आपसे दरयाफ्त किया – ए मेरे भतीजे , आपने क्या देखा? रसूलुल्लाह सल्लाहो अलय्हि वसल्लम ने जो कुछ देखा सुना सब बयां कर दिया। वरक़ा ने आपसे कहा ये वही नामूस है जिसे अल्लाह सुभानवताला ने हज़रते मूसा ( अलय्हि सलाम ) पर उतारा । काश में जवान होता और उस वक़्त तक जिन्दा रहता जब आपकी कौम आपको शहर बदर कर देगी। रसूलुल्लाह सल्लाहो अलय्हि वसल्लम ने ये सब सुनकर फ़रमाया – क्या मेरी कौम मुझे निकाल देगी? वरक़ा ने कहा – हाँ! जो पैगाम आप लेकर आये है, ऐसा पैगाम जब भी कोई लाया, उससे अदावत बढ़ती गयी , अगर मैं आपका ज़माना पाऊं तो आपसे पूरी तरह तआवुन करूँगा। फिर कोई ज्यादा वक़्त नहीं गुज़रा था की वरक़ा इन्तेकाल कर गए और वही का नुजूल भी कुछ दिनों के लिए बंद हो गया।
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