कौन है अहमदिया कम्युनिटी ? ( 200 mulko me moujud muslim ahmadiya samuday – Authentic Fact based View )

कौन है अहमदिया कम्युनिटी ? ( muslim ahmadiya samuday )

muslim ahmadiya samuday

अहमदिया जमाअत का इतिहास ( muslim ahmadiya samuday )

मुस्लिम अहमदिया जमाअत का आग़ाज़ 1889 में हुआ जब मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी (1835–1908) ने पंजाब (भारत) के छोटे से क़स्बे क़ादियाँ में इस जमाअत की नींव रखी। उनका दावा था कि वे वही “मसीह मौऊद” और “इमाम महदी” हैं जिनके आने की बशारत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम और इस्लामी तालीमात में दी गई थी।

यह जमाअत अपने अनुयायियों को शांति, तालीम, इंसानियत की खिदमत और अहिंसा का पैग़ाम देती है। ये जमात सुन्नी इस्लाम से अलग है ।

मान्यताएँ और शिक्षाएँ ( muslim ahmadiya samuday )

अहमदिया जमाअत का बुनियादी अकीदा तौहीद (अल्लाह की एकता) और पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को ख़ातम-उन-नबीयीन (नबियों की आख़िरी कड़ी) मानना है। मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद की तालीमात को यह जमाअत इस्लामी सुधार और ईमान की मजबूती का ज़रिया मानती है।

इस जमाअत का मशहूर नारा है: “Love for All, Hatred for None” यानी “सबके लिए मोहब्बत, किसी के लिए नफ़रत नहीं”। यह नारा दुनिया भर में शांति और इंसानियत की खिदमत की पहचान बन चुका है।

दुनिया में इनकी तादात( muslim ahmadiya samuday )

अहमदिया जमाअत आज 200 से ज़्यादा देशों में फैल चुकी है और इसके करोड़ों मानने वाले हैं। पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों से लेकर यूरोप, अमेरिका और मध्य-एशिया तक इस जमाअत के अनुयायी पाए जाते हैं।

इसका केंद्रीय हेडक्वार्टर शुरू में क़ादियाँ (भारत) में था, लेकिन बाद में पाकिस्तान के रब्वा (चिनाब नगर) और फिर लंदन (यूके) में शिफ्ट कर दिया गया। आज यह जमाअत लंदन से दुनिया भर की तहरीकों और कार्यक्रमों का संचालन करती है।

अहमदिया और सुन्नी मुसलमानों में अंतर ( muslim ahmadiya samuday )

इस्लाम की दुनिया में सुन्नी मुसलमानों की तादाद सबसे ज़्यादा है, जबकि अहमदिया जमाअत एक अल्पसंख्यक समूह है। दोनों ही इस्लाम, क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद ﷺ पर ईमान रखते हैं, मगर कुछ अहम धार्मिक अकीदों (beliefs) में फ़र्क़ है।

1. नुबूवत (Prophethood) की समझ

  • सुन्नी मुसलमान : उनका अकीदा है कि हज़रत मुहम्मद ﷺ ख़ातम-उन-नबीयीन (आख़िरी नबी) हैं और उनके बाद कोई भी नबी या मसीहा नहीं आ सकता।

  • अहमदिया जमाअत : उनका मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी (1835–1908) “मसीह मौऊद” और “इमाम महदी” हैं, जिन्हें नबी का दर्जा एक ग़ैर-शरई नबी के तौर पर मिला। यही सबसे बड़ा मतभेद है।

2. इस्लामी उम्मत की ताबीर (Interpretation of Ummah)

  • सुन्नी मुसलमान : उनके लिए उम्मत-ए-मुस्लिमा का मतलब है कि सब मुसलमान एक ही उम्मत हैं और हज़रत मुहम्मद ﷺ आख़िरी पैग़म्बर हैं।

  • अहमदिया मुसलमान : वे खुद को उम्मत-ए-मुहम्मद ﷺ का हिस्सा मानते हैं लेकिन मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद को अल्लाह की तरफ़ से भेजा गया सुधारक (Reformer) और मसीहा मानते हैं।

3. जिहाद की ताबीर

  • सुन्नी मुसलमान : जिहाद का मतलब ज़्यादातर अल्लाह की राह में मेहनत करना है, जिसमें कुछ हालात में क़िताल (युद्ध) भी शामिल होता है।

  • अहमदिया जमाअत : उनका मानना है कि आज के दौर में “जिहाद-ए-अकबर” यानी कलम और दुआ से जिहाद ज़्यादा अहम है। वे हथियार से जिहाद को मानवीय दुनिया के लिए मुनासिब नहीं मानते।

4. धार्मिक पहचान और स्वीकार्यता

  • सुन्नी मुसलमान : ज़्यादातर मुस्लिम मुल्क अहमदियों को मुसलमान नहीं मानते, ख़ासकर पाकिस्तान में 1974 से क़ानूनी तौर पर अहमदियों को ग़ैर-मुस्लिम घोषित किया गया है।

  • अहमदिया जमाअत : वे खुद को मुसलमान मानते हैं और दावा करते हैं कि उनका मिशन असल इस्लाम को शांति और मोहब्बत के साथ पेश करना है।

5. खलीफ़ा का निज़ाम (Khilafat System)

  • सुन्नी मुसलमान : उनका मानना है कि ख़िलाफ़त हज़रत मुहम्मद ﷺ के बाद चार खलीफ़ाओं (अबू बकर, उमर, उस्मान और अली रज़ि.) पर ख़त्म हो गई।

  • अहमदिया जमाअत : उनके यहाँ आज भी एक “खलीफ़ा” होता है जिसे खलीफ़त-उल-मसीह  कहा जाता है। यह जमाअत का रूहानी और तन्ज़ीमी (organizational) रहनुमा होता है।

यानी कुल मिलाकर अहमदिया और सुन्नी मुसलमानों का सबसे बड़ा अंतर नुबूवत (Prophethood) के मसले पर है। यही वजह है कि सुन्नी मुसलमान अहमदियों को “मुसलमान” के तौर पर नहीं मानते, जबकि अहमदिया जमाअत खुद को पूरी तरह मुसलमान मानती है।

अहमदिया समुदाय की सेवाएँ ( muslim ahmadiya samuday )

अहमदिया मुस्लिम जमाअत तालीम और इंसानियत की खिदमत के लिए मशहूर है। यह जमाअत दुनियाभर में सैकड़ों स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल चला रही है। इसके अलावा “Humanity First” नाम से एक इंटरनेशनल NGO भी काम कर रही है जो प्राकृतिक आपदाओं, भूकंप, बाढ़ और युद्धग्रस्त इलाक़ों में इंसानी मदद पहुँचाती है।

अहमदिया जमाअत हर साल “Peace Symposium” और “World Peace Conference” जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करती है, जिसमें शांति और इंसानी भाईचारे का पैग़ाम दिया जाता है।

दुनिया भर में अहमदिया जमाअत ने हज़ारों मस्जिदों का निर्माण किया है। इनमें से कुछ मशहूर मस्जिदें हैं – लंदन की बैत्वुल फ़ुतूह मस्जिद और जर्मनी की बैतुश-शुकर मस्जिद। भारत और अफ्रीका में भी इस जमाअत की मस्जिदें अपनी ख़ूबसूरती और वास्तुशिल्प के लिए मशहूर हैं।

  • तालीमी सेवाएँ : स्कूल और यूनिवर्सिटीज़ की स्थापना।

  • इंसानी खिदमत : प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य।

  • मस्जिद निर्माण : दुनिया भर में सैकड़ों मस्जिदें।

  • शांति अभियान : “Peace Symposium” और “World Peace Award” जैसे कार्यक्रम।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल FAQ ( muslim ahmadiya samuday )

Q1. अहमदिया मुस्लिम जमाअत की स्थापना कब हुई थी?
Ans: इसकी स्थापना 1889 में भारत के पंजाब के क़ादियाँ शहर में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने की थी।

Q2. अहमदिया मुस्लिम जमाअत का नारा क्या है?
Ans: “Love for All, Hatred for None” (सबके लिए मोहब्बत, किसी के लिए नफ़रत नहीं)।

Q3. अहमदिया समुदाय का हेडक्वार्टर कहाँ है?
Ans: लंदन, यूनाइटेड किंगडम में।

Q4. अहमदिया समुदाय किन देशों में है?
Ans: यह जमाअत 200 से अधिक देशों में मौजूद है।

Q5. अहमदिया समुदाय की मुख्य सेवाएँ क्या हैं?
Ans: शिक्षा, मस्जिद निर्माण, इंसानियत की खिदमत और शांति अभियान।

जज़ाकल्लाह खैर।

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