उस्मान इब्न अफ्फान (रज़ि.) का तआरुफ़ ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R. – Authentic Facts in Hindi)
इस्लामी इतिहास में हज़रत उस्मान इब्न अफ्फान (रज़ि.) का नाम एक रोशन सितारे की तरह चमकता है। आप तीसरे खलीफ़ा-ए-राशिदीन थे और अपने दौर में इस्लामी उम्मत को मज़बूत बनाने, कुरआन-ए-मजीद को एक मुसलसल और मुकम्मल किताब की शक्ल में जमा करने और उम्मत में इत्तेहाद क़ायम करने का काम अंजाम दिया। आपकी ज़िन्दगी सब्र, हया और इल्म का शानदार नमूना थी।
इस्लाम क़ुबूल करने से पहले ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R.)
हज़रत उस्मान इब्न अफ्फान (रज़ि.) का ताल्लुक बनी उमय्या क़बीले से था। आपका जन्म 576 ईस्वी में मक्का मुकर्रमा में हुआ। इस्लाम क़ुबूल करने से पहले आप एक बहुत ही शरीफ़, हया वाले और तिजारत (व्यापार) में कामयाब शख्स थे। अरब में लोग आपको “ग़नी” (अमीरी वाले) के नाम से जानते थे क्योंकि आप बहुत दौलतमंद थे और अपनी दौलत को लोगों की मदद में खर्च करते थे।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –
“सबसे ज़्यादा हया वाला मेरे उम्मत में उस्मान है।” (सहीह मुस्लिम, हदीस 2401)
इस्लाम से पहले ही आपकी आदतों में शराब, जुआ और बुत-परस्ती जैसी बुराईयाँ नहीं थीं। इस वजह से लोग आपको बहुत इज़्ज़त देते थे।
इस्लाम क़ुबूल करना ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R.)
हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) की दावत पर इस्लाम क़ुबूल किया। आप शुरूआती दौर के उन खास लोगों में से थे जिन्होंने बिना किसी झिझक के कलिमा-ए-शहादत पढ़ा। इस्लाम क़ुबूल करने के बाद आप पर भी क़ुरैश के लोगों ने सख्तियां कीं, मगर आपने सब्र किया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम के साथ वफ़ादारी निभाई।
आप शुरूआती दस अशरफ़ुल अव्वलीन मुसलमानों में से थे।
इस्लाम क़ुबूल करने के बाद क़ुरैश ने आपको सख़्त अज़ीयतें दीं। मगर आपने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम का दामन कभी न छोड़ा। जब इस्लाम के मानने वालों को मक्का में सताया गया, तो आपने पहली हिजरत हबशा (इथियोपिया) और बाद में हिजरत-ए-मदीना भी की।
सहाबी-ए-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R.)
इस्लाम लाने के बाद हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने अपनी ज़िन्दगी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम की ख़िदमत और दीन की ख़िदमत में गुज़ार दी। आपने हिजरत-ए-ऊला (हबशा की तरफ़) और फिर हिजरत-ए-मदीना की।
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आप को “ज़ुन-नूरैन” (दो नूरों के मालिक) कहा जाता है, क्योंकि आपने नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम की दो बेटियों (हज़रत रुकय्या और हज़रत उम्मे कुल्सूम रज़ि.) से निकाह किया।
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जंग-ए-बद्र में आप अपनी बीवी की बीमारी की वजह से शरीक न हो सके, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “उस्मान बद्र का अज्र पाएंगे।” (सहीह बुखारी, हदीस 3698)
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आप ने अपनी दौलत से दीन के कामों में बड़ा किरदार अदा किया। आपने मदीना में मशहूर कुआँ “बेर-ए-रूमाह” खरीदा और मुसलमानों के लिए सदक़ा कर दिया। (सहीह बुखारी, हदीस 2778)
- आपकी हया इतनी ज़्यादा थी कि नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “क्या मैं उस इंसान से हया न करूँ जिससे फ़रिश्ते भी हया करते हैं।” (सहीह मुस्लिम, हदीस 2401)
ख़िलाफ़त-ए-उस्मान (रज़ि.) ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R.)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम और हज़रत अबू बक्र व हज़रत उमर (रज़ि.) के बाद जब 644 ईस्वी में आपको खलीफ़ा चुना गया, तो आपने इस्लामी हुकूमत को और मज़बूत किया। आप का दौर तक़रीबन 12 साल चला।
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आपके दौर में इस्लामी सल्तनत की सरहदें ईरान, अज़रबैजान, आर्मीनिया और अफ्रीका तक फैल गईं।
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सबसे अहम काम आपने कुरआन-ए-मजीद को एक ही लहजे और हरफ़ में मुकम्मल तर्जुमा के साथ जमा करवा कर उम्मत में इत्तेहाद कायम किया।
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आपने मुसलमानों की फ़लाह-ओ-बहबूद के लिए कई मस्जिदें और कामयाब इदारें बनाए।
इस्लामी फुतूहात (फ़तह)
आपके दौर में इस्लामी सल्तनत बहुत तेज़ी से फैली।
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अफ्रीका, अज़रबैजान, आर्मीनिया, खुरासान और साइप्रस तक इस्लाम पहुँचा। (तारीख़-ए-ख़ुलफ़ा, इमाम सुयूती)
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इस्लामी नौसेना (नेवी) की बुनियाद भी आपके दौर में रखी गई।
कुरआन की तज्मीअ (Compilation of Quran)
सबसे अहम काम आपने किया कि जब अलग-अलग इलाक़ों में मुसलमानों के बीच कुरआन के लहजे (क़िराअत) में फ़र्क़ नज़र आया तो आपने सहाबा की एक कमेटी बनाई और कुरआन-ए-मजीद को एक ही मुसहफ़ में मुकम्मल किया। इसे “मुसहफ़-ए-उस्मानी” कहा जाता है। (सहीह बुखारी, हदीस 4987)
इनफ़ाक़ फ़ी सबीलिल्लाह
आपने जिहाद और दीन की ख़िदमत में लाखों दिरहम खर्च किए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “उस्मान के बाद अब कोई काम उन्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता।” (जामे तिरमिज़ी, हदीस 3701)
आख़िरी दिन और शहादत ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R.)
हज़रत उस्मान (रज़ि.) की ज़िन्दगी बहुत ही पाक और हया से भरी हुई थी। आपके ख़िलाफ़ कुछ मुनाफ़िक़ और बाग़ी ग़लत तर्जुमे और अफ़वाहें फैलाने लगे। धीरे-धीरे उन्होंने आप के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी। 35 हिजरी (656 ईस्वी) में उन्होंने आप के घर का घेराव किया।
हज़रत अली (रज़ि.) और सहाबा ने तलवार उठाने की पेशकश की लेकिन आपने फ़रमाया – “मैं खून-ख़राबा नहीं चाहता।”
आख़िरकार आप कुरआन-ए-मजीद की तिलावत करते हुए शहीद कर दिए गए। (तारीख़-ए-तबरी, वॉल्यूम 3)
आपकी शहादत उम्मत के लिए बहुत बड़ा सदमा थी और इसी से फ़ितना-ए-कबीरा की शुरुआत हुई।
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HAZRAT USMAN GANI | OSMAN GANI
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल FAQ ( 3rd Khalifa Uthman ibn affan R.)
Q1: हज़रत उस्मान (रज़ि.) का लाक़ब क्या था?
Ans: आपको “ज़ुन-नूरैन” कहा जाता था, क्योंकि आपने नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम की दो बेटियों से निकाह किया।
Q2: हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने इस्लाम कब क़ुबूल किया?
Ans: उन्होंने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) की दावत पर इस्लाम क़ुबूल किया।
Q3: कुरआन-ए-मजीद को किसने एक मुसलसल किताब में जमा किया?
Ans: हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने अपने दौर-ए-ख़िलाफ़त में।
Q4: हज़रत उस्मान (रज़ि.) को क्यों शहीद किया गया?
Ans: कुछ बाग़ियों ने उनकी खिलाफ़त के खिलाफ़ फ़ितना उठाया और उन्हें घर में घेर कर शहीद कर दिया।
Q5: हज़रत उस्मान (रज़ि.) की सबसे बड़ी ख़ासियत क्या थी?
Ans: उनकी हया, सब्र, दौलत का दीन के लिए इस्तेमाल और उम्मत को एकजुट रखना।
जज़ाकल्लाह खैर। अल्लाह सुब्हानवताला इस कोशिश में हुई छोटी बड़ी गलती को माफ़ करे – आमीन ।
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