मुसल्लह जिब्रील काबा शरीफ़ का मुबारक मुक़ाम ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi – Authentic Details)

मुसल्लह जिब्रील काबा शरीफ़ का मुबारक मुक़ाम ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

Musallah Jibreel Kaaba Hindi

काबा शरीफ़ दुनिया का सबसे मुक़द्दस मक़ाम है और इसका हर हिस्सा अपनी ख़ास रोहानी अहमियत रखता है। उन्हीं हिस्सों में से एक है मुसल्लह जिब्रील । यह वह जगह है जहाँ हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को नमाज़ अदा करने का तरीका सिखाया था, इसरा व मिराज के बाद।

मुसल्लह जिब्रील कहाँ है? ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

  • यह जगह काबा शरीफ़ के शज़ारवान (Shadharawan) पर बनी हुई भूरी संगमरमर (brown marble) की तख़्तियों से पहचानी जाती है।

  • यही वह मुक़ाम है जहाँ जिब्रील अमीन अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को नमाज़ के वक़्त और उनकी अदायगी सिखाई।

हदीस का हवाला ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रदियल्लाहुताला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –

“जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मुझे काबा शरीफ़ में नमाज़ पढ़ाई। उन्होंने मेरे साथ ज़ुहर पढ़ी जब सूरज ढल चुका था, अस्र तब पढ़ी जब हर चीज़ का साया उसके बराबर हो गया,  मग़रिब उस वक़्त पढ़ी जब रोज़ेदार रोज़ा खोलता है, ईशा उस वक़्त जब शफ़क़ (लालिमा) ग़ायब हो गई; और फ़ज्र उस वक़्त जब रोज़ेदार पर खाना-पीना हराम हो जाता है।

अगले दिन उन्होंने मुझे ज़ुहर पढ़ाई जब चीज़ का साया उसके बराबर था, अस्र जब साया दुगना हो गया, मग़रिब उसी वक़्त, ईशा जब रात का एक तिहाई हिस्सा गुज़र गया, और फ़ज्र उस वक़्त जब रोशनी फैल चुकी थी।

फिर जिब्रील ने मुझसे कहा – ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम, यही नमाज़े अदायगी हैं जो तुमसे पहले के अंबिया अदा करते थे और नमाज़ का वक़्त इन दोनों औक़ात के बीच है।”
([सुनन अबू दाऊद])

मुसल्लह जिब्रील की तारीखी तामीर ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

  • मसल्‍ला जिब्रील आठ टुकड़ों पर मुश्तमिल है जो संगमरमर (marble) से बने हैं।

  • यह संगमरमर Mary Stone कहलाता है, जो दुनिया की सबसे दुर्लभ क़िस्मों में से एक है।

  • यह तौहफ़ा अब्बासी खलीफ़ा अबू जाफ़र अल-मानसूर ने काबा शरीफ़ के लिए दिया था।

  • हर टुकड़े का साइज़ अलग-अलग है, इनमें सबसे बड़ा 33 सेंटीमीटर लंबा और 21 सेंटीमीटर चौड़ा है।

कुरआनी इशारा ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

क़ुरआन में मसल्‍ला जिब्रील का सीधे तौर पर ज़िक्र नहीं है, लेकिन जिब्रील अलैहिस्सलाम के ज़रिये वही और नमाज़ की तालीम का बयान कई आयात में आता है।

क़ुरान (53:5-6)

” उन्हें सिखाया (कुरआन) शदीदुल-क़ु्वा (यानी जिब्रील), जो बड़ी क़ुव्वत वाला है।”

यह आयत जिब्रील अमीन की तालीम और उनकी रहनुमाई की तरफ़ इशारा करती है।

आज का मसल्‍ला जिब्रील ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

आज भी तवाफ़ करने वाले ज़ायरीन इन भूरी संगमरमर की तख़्तियों को देख सकते हैं। चूँकि यह हिस्सा मताफ़ में आता है, इसलिए यहाँ नमाज़ अदा करना आम तौर पर मुमकिन नहीं। लेकिन इसे देखना और याद करना रोहानी सुकून और ईमान की ताज़गी का ज़रिया है।

मसल्‍ला जिब्रील के रोहानी फ़वाइद ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

  1. यह जगह हमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम और जिब्रील अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात याद दिलाती है।

  2. नमाज़ के वक़्त और अदायगी की तालीम इसी जगह से जुड़ी हुई है।

  3. यह मुक़ाम हमें इसरा व मिराज की बरकतों का अहसास कराता है।

हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को नमाज़ (सलाह) का तरीका और उसके औक़ात उस वक़्त सिखाए जब इसरा व मिराज (रात का सफ़र) का वाक़िया हुआ।

तफ़सील – 

  • इसरा व मिराज का वाक़िया हिजरत से तक़रीबन डेढ़ साल पहले (सन् 621 CE के करीब) पेश आया।

  • इसी सफ़र में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को पाँच वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ की गई।

  • मक्का लौटने के बाद, काबा शरीफ़ में हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए और उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को मसल्‍ला जिब्रील पर नमाज़ के औक़ात और अदायगी का तरीका सिखाया।

हदीस से सुबूत ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

अबू दाऊद की रिवायत में आता है कि जिब्रील अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को दो दिन तक पाँचों नमाज़ें अलग-अलग औक़ात पर पढ़ाई, और फिर फ़रमाया –

“ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम, यही नमाज़े अदायगी हैं जो तुमसे पहले के अंबिया अदा करते थे और नमाज़ का वक़्त इन दोनों औक़ात के बीच है।”

FAQs अक्सर पूछे जाने वाले सवाल ( Musallah Jibreel Kaaba Hindi)

Q1. मसल्‍ला जिब्रील कहाँ है?
यह काबा शरीफ़ के शज़ारवान पर मौजूद भूरी संगमरमर की तख़्तियों पर है।

Q2. इसे मसल्‍ला जिब्रील क्यों कहा जाता है?
क्योंकि यहाँ जिब्रील अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम को नमाज़ के औक़ात और तरीक़े सिखाए।

Q3. कितने संगमरमर के टुकड़े हैं?
कुल आठ टुकड़े हैं, जो Mary Stone से बने हैं।

Q4. क्या यहाँ नमाज़ अदा करना मुमकिन है?
यह हिस्सा तवाफ़ का रास्ता है, इसलिए आमतौर पर यहाँ नमाज़ पढ़ना मुमकिन नहीं।

Q5. यह संगमरमर कहाँ से आया?
यह खलीफ़ा अबू जाफ़र अल-मानसूर ने काबा के लिए तौहफ़े में दिया था।

जज़ाकल्लाह खैर।

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