रोहिंग्या मुसलमानो का इतिहास ( Rohingya Muslims history and Islamic view – 1st Stateless Minority Authentic Details)

रोहिंग्या मुसलमानो का इतिहास ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

Rohingya Muslims history and Islamic view

रोहिंग्या मुसलमान दुनिया की सबसे पीड़ित और उपेक्षित मुस्लिम कौमों में से एक मानी जाती है। यह समुदाय मुख्य रूप से म्यांमार (बरमा) के रखाइन (अराकान) प्रांत में सदियों से बसा हुआ है। लेकिन इस्लामी, ऐतिहासिक और राजनीतिक कारणों से इन्हें आज अपनी ज़मीन पर भी शरणार्थी जैसा जीवन जीना पड़ रहा है।

इस्लामी दृष्टिकोण ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले लोग हैं जो सदियों पहले अरब व्यापारियों और सूफियों के ज़रिए अराकान क्षेत्र में आए। उन्होंने इस्लाम की तालीम, मस्जिदें और सामाजिक जीवन स्थापित किया। आज यह समुदाय पूरी दुनिया के मुसलमानों से दुआओं और सहयोग की उम्मीद रखता है। इस्लाम हमें इंसाफ़ और मजलूमों की मदद करने की शिक्षा देता है, और रोहिंग्या मुसलमानों का मामला उसी का एक जीवंत उदाहरण है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

  • 8वीं सदी से अरब व्यापारी अराकान के तट तक पहुँचे।

  • धीरे-धीरे यहाँ इस्लाम फैला और स्थानीय लोग मुसलमान बने।

  • म्यांमार की आज़ादी (1948) के बाद से ही रोहिंग्या पर ज़ुल्म और भेदभाव शुरू हुआ।

  • 1982 में म्यांमार सरकार ने उन्हें “नागरिकता कानून” के तहत देश का नागरिक मानने से इंकार कर दिया।

  • नतीजा यह हुआ कि रोहिंग्या लोग “stateless” यानी बिना नागरिकता के हो गए।

राजनीतिक दृष्टिकोण ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

म्यांमार की सरकार और सेना रोहिंग्या को “बांग्लादेशी प्रवासी” करार देती है, जबकि वे सदियों से अराकान में रह रहे हैं। इस राजनीतिक षड्यंत्र के पीछे बौद्ध राष्ट्रवाद, संसाधनों पर कब्ज़ा और इस्लाम से दुश्मनी जैसी वजहें मानी जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इसे “दुनिया का सबसे अत्याचार झेलने वाला अल्पसंख्यक” कहा है।

आज की स्थिति ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

आज लाखों रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से पलायन कर बांग्लादेश, मलेशिया, भारत और अन्य देशों में शरणार्थी कैम्पों में रह रहे हैं। बांग्लादेश का कॉक्स बाज़ार दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है, जहाँ लाखों रोहिंग्या कठिन हालात में जी रहे हैं।

  • शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।

  • म्यांमार में बचे हुए रोहिंग्या लगातार हिंसा और प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं।

  • अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद म्यांमार सरकार उन्हें नागरिकता देने को तैयार नहीं।

रोहिंग्या मुसलमानों का मसला केवल इंसानी हक़ूक़ (human rights) का मुद्दा नहीं बल्कि पूरी उम्मत-ए-मुस्लिमाह की जिम्मेदारी है। ज़रूरत है कि इस मसले को सिर्फ़ राजनीतिक न समझा जाए, बल्कि मज़लूम इंसानों के हक़ की लड़ाई के तौर पर लिया जाए।

रोहिंग्या मुसलमान और इस्लामी तालीमात ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

कुरआन के हवाले

ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना


कुरआन कहता है – “और तुम को क्या हो गया है कि अल्लाह की राह में और उन बेबस मर्दों, औरतों और बच्चों के लिए लड़ाई नहीं करते जो कहते हैं, ऐ हमारे रब! हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके रहने वाले जालिम हैं।”
(सूरह अन-निसा 4:75)

यह आयत मज़लूमों की मदद करने और ज़ालिमों के ख़िलाफ़ खड़े होने का हुक्म देती है। रोहिंग्या मुसलमान इसी आयत का जीवंत उदाहरण हैं।

उम्मत की एकजुटता

“निश्चय ही मोमिन आपस में भाई भाई हैं।”
(सूरह अल-हुजरात 49:10)

रोहिंग्या मुसलमानों का दर्द पूरी उम्मत का दर्द है। मुसलमानों पर फ़र्ज़ है कि वे अपने भाइयों और बहनों की मदद करें।

हदीस के हवाले

मजलूम की मदद


रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “मुसलमान मुसलमान का भाई है। वह न तो उस पर ज़ुल्म करता है और न ही उसे दुश्मन के हवाले करता है। जो कोई अपने भाई की ज़रूरत पूरी करेगा, अल्लाह उसकी ज़रूरत पूरी करेगा।”
(सहीह बुख़ारी, हदीस 2442; सहीह मुस्लिम, हदीस 2580)

यह हदीस बताती है कि हमें रोहिंग्या मुसलमानों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।

उम्मत का हाल

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “मोमिन अपने आपसी मोहब्बत, रहमत और हमदर्दी में एक जिस्म की तरह हैं। जब जिस्म का कोई हिस्सा तकलीफ़ में होता है तो पूरा जिस्म बेचैनी और बुख़ार में होता है।”
(सहीह मुस्लिम, हदीस 2586)

इसका मतलब है कि रोहिंग्या की तकलीफ़ पूरी उम्मत-ए-मुस्लिमाह की तकलीफ़ है।

रोहिंग्या मुसलमानों का मसला सिर्फ़ राजनीति का नहीं बल्कि कुरआन और हदीस की रोशनी में एक फ़र्ज़ है कि मज़लूमों की मदद की जाए। उम्मत को उनकी आवाज़ बनना होगा, चाहे वह दुआ, इंसानी मदद या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंसाफ़ की मांग हो।

FAQs अक्सर पूछे जाने वाले सवाल ( Rohingya Muslims history and Islamic view )

Q1. रोहिंग्या मुसलमान कहाँ रहते हैं?
रोहिंग्या मुसलमान मुख्य रूप से म्यांमार के रखाइन (अराकान) प्रांत में रहते थे, लेकिन अब लाखों बांग्लादेश और अन्य देशों में शरणार्थी के रूप में हैं।

Q2. म्यांमार की सरकार उन्हें क्यों नहीं मानती?
म्यांमार सरकार उन्हें “बांग्लादेशी प्रवासी” कहती है और नागरिकता नहीं देती।

Q3. इस्लाम से उनका क्या संबंध है?
वे मुसलमान हैं और 8वीं सदी से इस्लाम इस क्षेत्र में मौजूद है।

Q4. आज उनकी स्थिति कैसी है?
अधिकांश रोहिंग्या शरणार्थी कैम्पों में रह रहे हैं, जहां शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवाएं बेहद सीमित हैं।

Q5. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या किया जा रहा है?
संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन लगातार म्यांमार पर दबाव डाल रहे हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला।

जज़ाकल्लाह खैर।

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