इस्लाम में चार प्रमुख मक़तब-ए-फ़िक्र ( 4 School of Thought In Islam Hindi – Authentic Details)

इस्लाम में चार प्रमुख मक़तब-ए-फ़िक्र ( 4 School of Thought In Islam Hindi)

4 School of Thought In Islam Hindi

 

 

 

 

इस्लाम में शरीअत (Shari’ah) की तफ़्सील और अमली रहनुमाई के लिए उलमा-ए-किराम ने क़ुरआन-ए-करीम, हदीस-ए-नबवी सल्लाहु अलय्हि वसल्लम , इज्मा (सम्मति) और क़ियास (Analogical reasoning) की बुनियाद पर फ़िक्ह (Islamic Jurisprudence) को तर्तीब दिया। इसके नतीजे में चार बड़े मक़तब-ए-फ़िक्र क़ायम हुए, जिन्हें “चार सुन्नी मसलक” भी कहा जाता है-

1. मक़तब-ए-फ़िक्र हनफ़ी Hanafi ( 4 School of Thought In Islam Hindi)

हनफ़ी मसलक के बानी इमाम अबू हनीफ़ा (Nu‘man ibn Thabit) रहमतुल्लाह अलैह का जन्म 80 हिजरी (699 CE) में कूफ़ा, इराक में हुआ। वह उस दौर में पैदा हुए जब सहाबा-ए-किराम के शागिर्द (ताबेईन) ज़िंदा थे और इल्मी हल्के बहुत सक्रिय थे। इमाम अबू हनीफ़ा ने फ़िक्ह में क़ुरआन और हदीस के साथ-साथ क़ियास (analogical reasoning) और राय (तर्कशक्ति) को भी अहमियत दी, ख़ासकर उन मसाइल में जिनका सीधा ज़िक्र न क़ुरआन में था और न हदीस में।

उनकी यह लचक और हालात के मुताबिक फ़ैसला करने की क्षमता की वजह से हनफ़ी मसलक तेज़ी से उन इलाक़ों में फैला जहाँ मुख़्तलिफ़ क़ौमें और तहज़ीबें रहती थीं। आज हनफ़ी मसलक दुनिया का सबसे बड़ा फ़िक्ही मसलक है, जो तुर्की, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया और अरब के कुछ हिस्सों में मौजूद है। उनकी मशहूर किताबें अल-हिदाया, फ़तावा आलमगिरी और अल-फ़िक्ह अल-अकबर हैं।

  • बानी (Founder): इमाम अबू हनीफ़ा (Nu‘man ibn Thabit) रहमतुल्लाह अलैह (699–767 CE)

  • इल्मी मरकज़: कूफ़ा, इराक

  • ख़ुसूसियात: हनफ़ी मसलक में क़ियास और राय (तर्क व विवेक) को ज़्यादा अहमियत दी जाती है। यह मसलक उन जगहों पर तेजी से फैला जहाँ अलग-अलग क़ौमें और तहज़ीबें मौजूद थीं, क्योंकि इसमें हालात के मुताब़िक मसाइल का हल निकाला जाता था।

  • फैलाव: आज के दौर में तुर्की, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, मिडिल एशिया और अरब दुनिया के कुछ हिस्सों में बहुमत हनफ़ी हैं।

  • मशहूर किताबें: अल-हिदाया, फ़तावा आलमगिरी

2. मक़तब-ए-फ़िक्र शाफ़ीई Shafi‘i  ( 4 School of Thought In Islam Hindi)

इमाम मुहम्मद इब्न इदरीस अल-शाफ़ीई रहमतुल्लाह अलैह (767–820 CE) का ताल्लुक़ क़ुरैश क़बीले से था और उनका जन्म ग़ज़ा, फ़िलिस्तीन में हुआ। इमाम शाफ़ीई ने मदीना में इमाम मालिक से इल्म हासिल किया और फिर इराक जाकर हनफ़ी उलमा से भी फ़िक्ह सीखी। उन्होंने दोनों तरीक़ों का गहरा मुताला किया और एक मुनज़्ज़म उसूल-ए-फ़िक्ह (Principles of Jurisprudence) का निज़ाम तर्तीब दिया, जो बाद में अल-रिसाला नामक किताब में दर्ज हुआ।

शाफ़ीई मसलक में हदीस को बहुत अहमियत दी जाती है और क़ियास व इज्मा का इस्तेमाल भी किया जाता है, लेकिन हदीस की सनद और सहीह होने की सख़्त शर्त होती है। यह मसलक इंडोनेशिया, मलेशिया, यमन, सोमालिया, केन्या, ब्रुनेई और पूर्वी अफ्रीका के बहुत से हिस्सों में पाया जाता है।

  • बानी: इमाम मुहम्मद इब्न इदरीस अल-शाफ़ीई रहमतुल्लाह अलैह (767–820 CE)

  • इल्मी मरकज़: मिस्र

  • ख़ुसूसियात: शाफ़ीई मसलक में हदीस को फ़ैसलों की पहली दलील माना जाता है। इसमें क़ियास और इज्मा का इस्तेमाल भी है, लेकिन हदीस की सख़्त तफ़्सील और दुरुस्तगी पर बहुत ज़ोर है।

  • फैलाव: इंडोनेशिया, मलेशिया, यमन, सोमालिया, केन्या, फ़िलीपींस और पूर्वी अफ्रीका के बहुत से इलाक़ों में।

  • मशहूर किताबें: अल-उम्म, अल-रिसाला

3. मक़तब-ए-फ़िक्र मालिकी Maliki ( 4 School of Thought In Islam Hindi)

इमाम मालिक इब्न अनस रहमतुल्लाह अलैह (711–795 CE) मदीना मुनव्वरा के रहने वाले थे, और मदीना के अहले इल्म से सीधा सुन्नत का इल्म हासिल किया। उनकी सबसे मशहूर किताब अल-मुवत्ता है, जिसमें उन्होंने हदीसों के साथ-साथ सहाबा और ताबेईन के अमल को भी शामिल किया।

मालिकी मसलक की ख़ास बात यह है कि इसमें अमल-ए-अहले मदीना (मदीना के लोगों की प्रैक्टिस) को शरीअत की मजबूत दलील माना जाता है, क्योंकि मदीना में रहने वाले लोग सीधे नबी ﷺ के दौर और उनके बाद के सहाबा के तरीक़े से वाक़िफ़ थे। यह मसलक ज़्यादातर मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनिशिया, लीबिया, मौरिटानिया और पश्चिमी अफ्रीका में पाया जाता है।

  • बानी: इमाम मालिक इब्न अनस रहमतुल्लाह अलैह (711–795 CE)

  • इल्मी मरकज़: मदीना मुनव्वरा

  • ख़ुसूसियात: मालिकी मसलक में अमल-ए-अहले मदीना (मदीना के लोगों की प्रैक्टिस) को शरीअत की दलील माना जाता है, क्योंकि मदीना नबी ﷺ का शहर है और वहां के लोग सीधा सुन्नत से जुड़े हुए थे।

  • फैलाव: मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनिशिया, लीबिया, पश्चिमी अफ्रीका, सूडान।

  • मशहूर किताबें: अल-मुवत्ता

4. मक़तब-ए-फ़िक्र हम्बली Hanbali- ( 4 School of Thought In Islam Hindi)

इमाम अहमद इब्न हम्बल रहमतुल्लाह अलैह (780–855 CE) का जन्म बग़दाद, इराक में हुआ। वह हदीस के बहुत बड़े मुहद्दिस थे और उनकी किताब अल-मुस्नद में लगभग 30,000 हदीसें शामिल हैं। हम्बली मसलक में क़ुरआन और हदीस को सबसे ऊपर रखा जाता है, और सहाबा के असर (क़ौल व अमल) को भी क़बूल किया जाता है।

क़ियास और राय का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है और एहतियात बरती जाती है ताकि दीन में बेवजह बदलाव न हो। यह मसलक ज़्यादातर सऊदी अरब, क़तर, यूएई और अरब दुनिया के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। हम्बली मसलक से बाद में सलफ़ी और वहाबी तहरीक का ताल्लुक भी जोड़ा जाता है, लेकिन असल हम्बली फ़िक्ह उससे कहीं ज़्यादा वसीअ और इल्मी है।

  • बानी: इमाम अहमद इब्न हम्बल रहमतुल्लाह अलैह (780–855 CE)

  • इल्मी मरकज़: बग़दाद, इराक

  • ख़ुसूसियात: हम्बली मसलक में हदीस और असर (सहाबा के क़ौल) को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाती है, और क़ियास का इस्तेमाल बहुत सीमित है। इस मसलक में एहतियात और सख़्ती ज़्यादा है।

  • फैलाव: सऊदी अरब, क़तर, यूएई, और अरब दुनिया के कुछ हिस्से।

  • मशहूर किताबें: अल-मुस्नद, अल-मुघनी

ये चारों मसलक एक ही इस्लामी शरीअत की तफ़्सील हैं और इनमें बुनियादी अकीदा और इस्लाम की असल तालीमात में कोई फर्क नहीं। फर्क सिर्फ़ फ़िक्ही मसाइल के तरीक़ा-ए-इस्तंबात (दलील निकालने के तरीक़े) में है। सभी का मक़सद अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की हिदायत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारना है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल FAQ ( 4 School of Thought In Islam Hindi)

Q1: क्या चारों मसलक अलग-अलग धर्म हैं?
A: नहीं, ये सभी सुन्नी इस्लाम का हिस्सा हैं और अकीदा एक ही है, फर्क सिर्फ़ मसाइल के हल के तरीक़े में है।

Q2: क्या एक मुसलमान मसलक बदल सकता है?
A: जी हाँ, लेकिन उलमा की सलाह और इल्मी समझ के साथ, क्योंकि बिना इल्म के बदलना फ़ितना पैदा कर सकता है।

Q3: कौन सा मसलक सबसे बेहतर है?
A: सभी मसलक बराबर हक़ और सहीह हैं, किसी को बेहतर कहना सही नहीं।

Q4: क्या चारों मसलक की बुनियाद क़ुरआन और हदीस पर है?
A: जी हाँ, चारों मसलक की असल बुनियाद क़ुरआन, हदीस, इज्मा और क़ियास पर है।

Q5: क्या इन मसलकों में इत्तेहाद हो सकता है?
A: जी हाँ, असल में इत्तेहाद है, फर्क सिर्फ़ फ़िक्ही राय में है, अकीदा और ईमान एक ही है।

जज़ाकल्लाह खैर।

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