मस्जिद ए नबवी में मौजूद मुबारक 8 खम्भे ( Pillars of the Prophet’s Mosque in Hindi )
मस्जिद ए नबवी में 8 मुबारक और बेहद खास खम्भे मौजूद है जिनकी दास्ताँ अलग अलग वजह से खास है और मस्जिद ए नबवी के बाकि खम्बो से अलग है। ये खम्भे एक छोटे से हिस्से में, पुराने वक़्त से, नबी की मस्जिद का हिस्सा है उस हिस्से को रौदाह रियाजुल जन्नाह कहते है। इस मुबारक हिस्से रियाजुल जन्नाह में हरी कालीन ( हरा कारपेट ) बिछा हुआ है ।
तमाम खम्बे रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम के वक़्त से लेकर आज तक उसी जगह मौजूद है जैसे ये पहली मर्तबा बनाये गए थे। आज इनमे से 6 खम्भे मक़सूरह के बहार की तरफ और 2 के अंदर की तरफ मौजूद है। मुक़द्दस चैंबर के चारो ओर सुनहरी रेलिंग के अंदर 3 खम्भे शामिल है ओर उस तरफ है जहां लोग रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम पर सलाम भेजने आते है।
1. उस्तुवानाह हन्नाना ( Ustuwaanah Hannanah – (the weeping pillar) – pillars of the Prophet’s Mosque)
इसे उस्तुवाना मुखल्लक भी कहते हैं। यह खंभों में सबसे मुबारक है क्योंकि यह रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम की नमाज़ की जगह थी। इस जगह पर कभी खजूर का पेड़ हुआ करता था। मिम्बर के आने से पहले रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम खुतबा देते समय इस पर झुकते थे।जब मिम्बर बना तो नबीये पाक ने खुतबा के लिए इसका इस्तेमाल किया। पर जब इसे हटाया गया तो पेड़ से रोने की इतनी ग़मगीन आवाज़ सुनाई दी कि पूरी मस्जिद गूंज उठी और मस्जिद में मौजूद लोग रोने लगे। रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – ये पेड़ इसलिए रोता है क्यूंकि अल्लाह का जिक्र इसके नज़दीक था ओर अब जब मिम्बर बन गया है तो यह अपने आस पास के जिक्र से दूर हो गया है । अगर मैं इस पर अपना हाथ न रखता तो यह क़यामत के दिन तक इसी तरह रोता रहता । कुछ वक़्त बीतने के बाद पेड़ सूख गया और उसे उसी जगह मस्जिद ए नबवी में दफ़न कर दिया गया जहाँ आज उस्तुवानाह हन्नाना खम्भा मौजूद है।
2. उस्तुवाना सरीर ( Ustuwaanah Sareer – pillars of the Prophet’s Mosque)
‘सरीर’ का मतलब है सोने की जगह। बताया जाता है कि रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम यहीं पर एतिकाफ़ करते थे और एतिकाफ़ करते हुए यहीं सोते थे। और आपके सोने के लिए यहां लकड़ी का एक चबूतरा बनाया गया था। जिस जगह पर आज उस्तुवाना सरीर खम्भा मौजूद है ।
3. उस्तुवाना तौबा ( Ustuwaanah Tawbah – pillars of the Prophet’s Mosque)
उस्तुवाना अबू लुबाबा के नाम से भी जाना जाता हैं। अबू लुबाबा रदिअल्लहु तालाअन्हु मशहूर सहाबाओं में से एक थे। इस्लाम से पहले, उनका बनू कुरैज़ा के यहूदियों से रिश्ता था। जिन्होंने जंग ए ख़ंदक़ के दौरान वादा खिलाफी की थी जिसके बाद उन्हें बंदी बना लिया गया था। हज़रते अबू लुबाबा रदिअल्लहु तालाअन्हु को यहूद कबीले की गद्दारी और अपने फैसलों पर बहुत पछतावा था।
जिसके बाद मस्जिद ए नबवी में मौजूद एक खजूर के पेड़ के तने से आपने अपने आपको बांध लिया और कहा – “जब तक मेरी तौबा अल्लाह सुभानवताला कुबूल नहीं कर लेते, मैं यहाँ से खुद को नहीं खोलूँगा। और रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम को ही मेरी ज़ंजीरें खोलनी होंगी।” जब रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने यह सुना तो उन्होंने कहा “अगर वह मेरे पास आते तो मैं उनकी तरफ़ से माफ़ी माँगता। अब जब उन्होंने अपनी मर्जी से काम किया है, मैं उन्हें तब तक नहीं खोल सकता जब तक उनकी तौबा कुबूल न हो जाए।”
कई दिनों तक आप सिर्फ नमाज़ और बय्तुल खला के लिए पेड़ से अलग होते वरना पेड़ से बंधे हुए होते। ऐसे वक़्त में आपकी बीवी और बेटी आपको खोल देती और फिर आपको पेड़ से बांधने में मदद करती। आप बिना खाये पिए, अपना वक़्त गुज़ार रहे थे, जिसकी वजह से आपकी नज़र और सुनने की ताक़त में असर पड़ा। फिर कुछ दिनों के बाद एक सुबह जब रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम उम्मे सलमा (रज़ि.) के घर में तहज्जुद की नमाज़ पढ़ रहे थे, तो नबी को खुशखबरी मिली कि हज़रते अबू लुबाबा रदिअल्लहु तालाअन्हु की तौबा कुबूल हो गयी है। एक सहाबा ने अबू लुबाबा यह खबर दी, और पेड़ से खोलना चाहा, तो अबू लुबाबा रदिअल्लहु तालाअन्हु ने इनकार कर दिया, और कहा “जब तक रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम अपने मुबारक हाथों से मुझे नहीं खोलते, मैं किसी और को ऐसा करने की इजाज़त नहीं दूँगा।” जब रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम फज्र की नमाज़ के लिए अंदर आए तो आपने हज़रते अबू लुबाबा रदिअल्लहु तालाअन्हु को खोल दिया। उसी जगह पर आज उस्तुवाना तौबा खम्बा मौजूद है ।
4. उस्तुवानह आयशा ( रदिअल्लहु ताला अन्हा) ( Ustuwaanah Aisha RA – pillars of the Prophet’s Mosque)
रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम यहां अपनी नमाज़ अदा करते थे और उसके बाद उस्तुवाना हन्नाह में चले जाया करते थे। इसे उस्तुवाना कुराह भी कहा जाता है। इसकी वजह सय्यदा हज़रते आयशा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया – “इस मस्जिद में एक ऐसी जगह है कि अगर लोगों को इसकी असली बरकत पता होती, तो वे इस तरह से इसकी ओर आते कि वे यहाँ नमाज़ अदा करने के लिए बार बार पर्चियाँ डालते (यानी कुराह)।
लोगों ने सय्यदा हज़रते आयशा (रज़ि.) से उस जगह को बताने के लिए कहा, लेकिन आपने ऐसा करने से इनकार कर दिया। बाद में अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर (रज़ि.) की गुज़ारिश पर आपने उस मुबारक जगह की तरफ इशारा किया। इसलिए इसे उस्तुआनाह आयशा कहा जाता है, क्योंकि हदीस भी आपने बताई और उस जगह का इल्म भी आपने अता किया। हज़रते अबू बकर और उमर रदिअल्लहु तालाअन्हु अक्सर यहाँ नमाज़ पढ़ा करते थे।
5. उस्तुवानाह अली ( रदिअल्लहु ताला अन्हु ) ( Ustuwaanah Ali RA – pillars of the Prophet’s Mosque)
इसे उस्तुवाना महरस या हर्स के नाम से भी जाना जाता है। ‘हर्स’ का मतलब है निगरानी करना या हिफाज़त करना। यह वह जगह हुआ करती थी जहाँ सहाबा में से कुछ लोग निगरानी करते या हिफाज़त के लिए खड़े रहते । हज़रते अली रदिअल्लहु तालाअन्हु वह शक़्स थे जो ज़्यादातर इस जगह रहा करते , जिसके लिए इसे अक्सर उस्तुवाना अली (रदिअल्लहु तालाअन्हु ) कहा जाता है। जब रसूलुल्लाह सल्लाहु अलय्हि वसल्लम सय्यदा हज़रते आयशा (रज़ि.) के घर के दरवाज़े से मस्जिद में दाखिल होते, तो इस जगह से गुज़रा करते थे।
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