इस्लाम में औरत के 7 अहम हक़ ( 7 Important rights of women in islam hindi – Authentic details )
इस्लाम में औरत के हक़ ( rights of women in islam hindi )
इस्लाम में औरत का मुक़ाम बहुत ऊँचा और अहम है। क़रीब 1450 साल पहले जब जहालत का दौर था, उस वक़्त अल्लाह के रसूल सल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने औरतों को वह हक़ दिए जो उनकी इज़्ज़त, शिनाख़्त और हयात के हर मरहले में उनके मर्तबे को बुलंद करते हैं।
ये हक़ औरत को अपनी पहचान और आवाज़ रखने का मौक़ा देते हैं, और उन्हें उन लोगों से महफ़ूज़ रखते हैं जो उन्हें सिर्फ़ एक चीज़ समझते थे। आइए तफ़सील से देखें कि इस्लाम में औरत के कौन-कौन से हक़ हैं और ये कैसे मुस्लिम औरत (मुस्लिमाह) को मज़बूत बनाते हैं।
रिश्तों में औरत के हक़ ( rights of women in islam hindi )
इस्लाम औरत के हर किरदार — बेटी, बहन, माँ, बीवी — को इज़्ज़त और अहम्मियत देता है।
1. बेटी के तौर पर हक़ ( rights of women in islam hindi )
इस्लाम शुरुआत से ही वालिदैन को हिदायत देता है कि वो अपनी बेटी की तरबियत मोहब्बत, रहमत और इल्म से करें। वालिद (पिता) पर ज़िम्मेदारी है कि वो उसे दीन की तालीम दे, अच्छा खाना, कपड़ा और रहन-सहन मुहैया कराये , जब तक कि वो बालिग़ होकर निकाह न कर ले।
2. बहन के तौर पर हक़ ( rights of women in islam hindi )
अगर बहन भाई की कफ़ालत में हो, तो भाई पर वाजिब है कि वो उसका ख़र्चा उठाए, उसकी इज़्ज़त करे और मोहब्बत से पेश आए।
3. माँ के तौर पर हक़ ( rights of women in islam hindi )
माँ का हक़ इस्लाम में सबसे ज़्यादा तवज्जोह के साथ बयान किया गया है। हदीस में आता है कि जब एक सहाबी ने पूछा, “मेरे अच्छे सुलूक का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है?” तो नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने तीन बार फ़रमाया, “तुम्हारी माँ,” फिर फ़रमाया “तुम्हारे वालिद।”
(सहीह मुस्लिम 2548b)
4. बीवी के तौर पर हक़ ( rights of women in islam hindi )
नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने फ़रमाया –
“तुम में सबसे बेहतर वो है जो अपनी बीवी के साथ सबसे अच्छा सुलूक करे, और मैं अपनी बीवियों के साथ सबसे अच्छा सुलूक करता हूँ।”
(सुनन इब्न माजह 1977)
बीवी को हक़ है कि उसका शौहर मोहब्बत और इंसाफ़ से पेश आए, उसका ख़र्चा उठाए, अलग मकान दे, और अगर एक से ज़्यादा बीवियाँ हों तो सबके साथ बराबरी करे।
इल्म का हक़ Right to Education ( rights of women in islam hindi )
इस्लाम ने इल्म हासिल करना हर मुसलमान — मर्द और औरत — पर फ़र्ज़ किया। औरत को भी हक़ है कि वो दीन और दुनिया का इल्म सीखे। हदीस में आता है कि उनमे से कुछ (औरतें) नबी सल्लल्लाहु अलय्हि वसल्लम के पास आकर इल्म लेती थीं और रसूल सल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने उनके लिए ख़ास दिन मुक़र्रर किया।
(सहीह बुख़ारी 101)
विरासत का हक़ Right to Inheritance ( rights of women in islam hindi )
क़ुरआन पाक (सूरह निसा, आयत 4) में अल्लाह ने साफ़ हुक्म दिया कि औरत को भी मर्द की तरह विरासत में हिस्सा है — चाहे वो ज़मीन हो, ज़ेवर हो या माल। कोई भी उसका हक़ उसकी रज़ामंदी के बग़ैर नहीं ले सकता।
गवाही का हक़ Right to Testimony ( rights of women in islam hindi )
औरत को गवाही देने का हक़ है। कुछ मामलों में उसकी गवाही मर्द के बराबर मानी जाती है, और कुछ में आधी। लेकिन पाँच मामले ऐसे हैं जहाँ उसकी अकेली गवाही क़बूल है — जैसे बच्चे की पैदाइश, नवजात की पुकार, दूध पिलाना, कपड़ों के नीचे छुपी बीमारी, और इद्दत की मियाद का पूरा होना।
अपने माल पर इख़्तियार Right to Own Money ( rights of women in islam hindi )
औरत को अपने कमाए या पाए हुए माल पर पूरा इख़्तियार है। वो चाहे तो रखे, चाहे तो खर्च करे, और उसे घर-परिवार का ख़र्चा उठाने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं। घर का सारा खर्चा मर्द पर वाजिब है — और अगर मर्द ये न करे तो वो गुनाहगार है।
अपना हमसफ़र चुनने का हक़ Right to Choose a Partner ( rights of women in islam hindi )
इस्लाम में औरत को निकाह के लिए रज़ामंदी देना ज़रूरी है। किसी को हक़ नहीं कि उसे मजबूर करे। अगर कुंवारी लड़की शर्म से चुप रहे, तो ये भी उसकी रज़ामंदी मानी जाती है।
(सहीह बुख़ारी 6946)
राय और वोट का हक़ Right to Vote ( rights of women in islam hindi )
औरत को अपनी राय देने और वोट करने का पूरा हक़ है। इस्लाम में औरत की राय की अहमियत है, चाहे वो घर के मसले हों या समाज के।
इस्लाम ने औरत को वो हक़ दिए जो उस दौर में किसी मज़हब या क़ानून ने नहीं दिए थे। ये हक़ उसकी इज़्ज़त, हिफ़ाज़त और आज़ादी के ज़ामिन हैं — और उसे हर रिश्ते और हर मरहले में बराबरी और इंसाफ़ का हक़दार बनाते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल FAQ ( rights of women in islam hindi )
1. इस्लाम में औरत के सबसे अहम हक़ कौन-कौन से हैं?
इस्लाम में औरत को तालीम का हक़, विरासत का हक़, गवाही देने का हक़, अपने माल पर इख़्तियार, निकाह में रज़ामंदी और इज़्ज़त के साथ ज़िंदगी गुज़ारने का हक़ दिया गया है।
2. क्या इस्लाम औरत को मर्द के बराबर हक़ देता है?
जी हाँ, इस्लाम औरत और मर्द दोनों को बराबरी का दर्जा देता है, लेकिन दोनों की ज़िम्मेदारियाँ और किरदार अलग-अलग रखे गए हैं।
3. क्या औरत को इस्लाम में तालीम हासिल करने की इजाज़त है?
हाँ, इस्लाम ने इल्म हासिल करना हर मुसलमान — मर्द और औरत — पर फ़र्ज़ किया है। नबी सल्लाहु अलय्हि वसल्लम ने औरतों को ख़ास वक़्त देकर दीन की तालीम दी।
4. क्या इस्लाम में औरत को अपनी शादी का फ़ैसला खुद करने का हक़ है?
जी हाँ, इस्लाम में निकाह के लिए औरत की रज़ामंदी ज़रूरी है। किसी को मजबूरन शादी करने का हक़ नहीं।
5. क्या इस्लाम में औरत को अपना माल और कमाई रखने का हक़ है?
हाँ, औरत को अपने कमाए या विरासत में पाए हुए माल पर पूरा इख़्तियार है, और घर का ख़र्चा उठाना उस पर फ़र्ज़ नहीं।
जज़ाकल्लाह खैर। अल्लाह सुब्हानवताला इस कोशिश में हुई छोटी बड़ी गलती को माफ़ करे – आमीन ।
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